Dear Readers
Enclosed here is a collection of Inspirational and Motivational Quotes in Hindi.
These Quotes are from India's glorious Enlightened Spiritual Masters : Swami Vivekananda, Ramakrishna Paramhansa, Yug rishi Shriram Sharma Acharya , Maharishi Arvind, Mata Bhagwati Devi Sharma , Guru Nanak ji and similar others.
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New Quotes will continuously be added to this collection. So please keep checking back for the same.

१. अच्छे विचार ही मनुष्य को सफलता और जीवन देते हैं।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

५. बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

५. बाज़ार में वस्तुओं की कीमत दूसरे लोग निर्धारित करते हैं, पर मनुष्य अपना मूल्यांकन स्वयं करता है और वह अपना जितना मूल्यांकन करता है उससे अधिक सफलता उसे कदपित नहीं मिल पाती। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


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-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

१३. आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है , पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाई ही खोजता है।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

१४. व्यभिचार के , चोरी के, अनीति बरतने के , क्रोध एवं प्रतिशोध के, ठगने एवं दंभ , पाखंड बनाने के कुविचार यदि मन में भरे रहें तो मानसिक स्वास्थ्य का नाश ही होने वाला है। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

१५. अपनी गलतियों को ढूँढना , अपनी बुरी आदतों को समझना , अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं को अनुभव करना और उन्हें सुधारने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहना यही जीवन संग्राम है। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य






-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

३९. विनम्र रहिये , क्योंकि आप इस महान संसार की वस्तुतः एक बहुत छोटी इकाई हैं। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



- गुरु नानक देव

४४. जो भी धर्म हो , जो भी मत हो , सभी उसी एक ईश्वर को पुकार रहे हैं।


४५. कुमार्ग से कमाया गया हुआ धन कुछ देर के लिए प्रसन्नता दे सकता है पर अन्त में वह रुलाता हुआ ही विदा होता है। बिना परिश्रम किये मुफ्त में मिला हुआ धन भी बुराइयों को ही जन्म देता है। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-स्वामी विवेकानन्द जी



५१. ईश्वरीय नियम उस बुद्धिमान माली की तरह है जो बेकार घास -कूड़े को उखाड़ कर फेंक देता है और योग्य पौधों को भरपूर साज संभाल कर उन्हें उन्नत बनता है।

निश्चय ही ईश्वरीय नियम बेकार पदार्थों की गन्दगी हटाते रहतें हैं,ताकि सृष्टि का सौंदर्य नष्ट ना हो।
(अखंड ज्योति -मार्च १९४३ ,पेज -६८ )-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
५४. अगले दिनों संसार में एक भी व्यक्ति अमीर न रह

सकेगा। पैसा बँट जायेगा , पूँजी पर समाज का नियंत्रण होगा और हम सभी केवल निर्वाह मात्र के अर्थ साधन उपलब्ध कर सकेंगे। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

५७. जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मा विश्वास उतना ही ज़रूरी है ,

-माता भगवती देवी शर्मा


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

६१. लक्ष्य के अनुरूप भाव उदय होता है तथा उसी स्तर का प्रभाव क्रिया में पैदा होता है। -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
६३. “परिस्थितियों का रोना न रोयें :लंबी-चौड़ी योजनाएँ बनाने की अपेक्षा अपने पास मौजूद साधनों को लेकर ही छोटे-मोटे कार्यों में जुट जाया जाए तो भी प्रगति का सशक्त आधार बन सकता है ।

काम छोटा हो अथवा बड़ा उसमें सफलता के कारण, साधन नहीं, अथक पुरुषार्थ, लगन एवं प्रामाणिकता बनते हैं । देखा जाए तो विश्व के सभी मूर्धन्य संपन्न सामान्य स्थिति से उठकर असामान्य तक पहुँचे । साधन एवं परिस्थितियाँ तो प्रतिकूल ही थीं, पर अपनी श्रमनिष्ठा एवं मनोयोग के सहारे सफलता के शिखर पर जा चढ़े ।
वे यदि परिस्थितियों का रोना रोते रहते तो अन्य व्यक्तियों के समान ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते और संपन्न बनने की कल्पना में मन बहलाते रहते ।" - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य , (Book: बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृ. १३)
६४. यह दुर्भाग्य ही है की आज धन को सर्वप्रथम स्थान और सम्मान मिल गया !
इसका दुष्परिणाम यह हुआ की व्यक्ति अधिकाधिक धन सँग्रह करके बडे से बड़ा सम्मानीय बनना चाहता है , जबकि धन का उपयोग बिना उसे रोके निरंतर सत्यप्रयोजनो में प्रयुक्त करते रहना ही हो सकता है !

इसलिए धन उपार्जन की प्रशंसा के साथ साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है की महत्वपूर्ण अवश्यताक्ताओं की पूर्ती के लिए उसे तत्काल प्रयुक्त करते रहा जाये ! -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य( Vangmaya Nos 66)
६७. संसार में कांटे बहुत हैं ! उन सबको हटा देना बहुत कठिन हैं ! यह सरल हैं की अपने पैरों में जूते पहने और बिना कांटे कंकडों से कष्ट पाये निश्चिनतिता पूर्वक विचरण करे !

सारी दुनिया को अपनी इच्छा अनुकूल चलाने वाला नहीं बनाया जा सकता , पर अपना सोचने का ढंग ऊँचा उठाकर लोगों से बिना टकराये सरलता पूर्वक अपने को बचाकर रखा जा सकता हैं और बिना टकराए वक्त गुज़र सकता हैं !
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book " युवा पीढ़ी को उज्जवल भविष्य का मार्गदर्शन " /Yuva Pidhi Ko Ujjwal Bhavishya ka Margdarshan)
६८. हमें यह जानना चाहिए की इश्वर किसी के भाग में कुछ और किसी के

हर आदमी अपने इछानुसार कर्म करने में पूर्ण स्वतंत्र है ! कर्मो के अनुसार ही हम सब फल पाते हैं ! इसलिए भाग के ऊपर अवलंबित ना रहकर मनुष्य को कर्म करना चाहियें !
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book : " युवा पीढ़ी को उज्जवल भविष्य का मार्गदर्शन " (Yuva Pidhi Ko Ujjwal Bhavishya ka Margdarshan)
६९. बुद्धि की देवी गायत्री के प्रत्येक उपासक के लिए स्वाध्याय भी उतना ही आवश्यक धर्मं कृत्य है , जितना की जप , ध्यान , पाठ आदि. ।

बिना स्वाध्याय के , बिना ज्ञान की उपासना के बुद्धि पवित्र नहीं हो सकती , मानसिक मलिनता दूर नहीं हो सकती, और बिना इस सफाई के बिना माता का सच्चा प्रकाश कोई उपासक अपने अन्तः करण में अनुभव नहीं कर सकता ।
जिसे स्वाध्याय से प्रेम नहीं हैं उसे गायत्री उपासना से प्रेम है यह माना नहीं जा सकता ।
बुद्धि की देवी गायत्री का सच्चा भोजन स्वधयाय ही है । ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं । इसलिए गायत्री उपासना के साथ ज्ञान की उपासना भी अविछिन्न रूप से जुडी हुई हैं ।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
७०. आधे अधूरे मन से कभी काम नहीं करना चाहिए । शारीर और मन की जब शक्ति जुड़ जाती है , तब आदमी बडे से बडे कार्य भी आसानी से कर
सकता है । जितने भी महापुरुष हुए है , उन्होने मन लगाकर कार्य किया है , तभी सफलता मिली है । जो भी काम आपको सौपा गया है , उसे मन लगाकर करो ।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ( Book-पेज १०८ - पूज्य गुरुदेव के कुछ मार्मिक संस्मरण )
७१. बच्चे संस्कारी कैसे बने :


-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ( Book-पेज १०८ - पूज्य गुरुदेव के कुछ मार्मिक संस्मरण )
७१. बच्चे संस्कारी कैसे बने :
आप पहले अपने परिवार में इस तरह का त्यागमय वातावरण बनाइये

जैसे कि दशरथ के यहाँ था , और जैसा कि राम सीता , लक्ष्मण -उर्मिला आदि का त्यागमय जीवन था । वैसा वातावरण आपके घर परिवार का होगा तभी यह हो सकता है ।
उर्मिला का त्याग सीता जी से भी ज़यादा है । जिस घर में ऐसा वातावरण होगा वहाँ संस्कारवान बच्चे पैदा होंगे ।
एक बार -रामचंद्र जी और भरत जी गेंद खेल रहे थे । भारत जी खेलने में कमज़ोर थे , परन्तु रामचंद्र जी उन्हे बार बार जिता देते थे । अपने से छोटों कि हिम्मत औए इज़ज़त बढ़ाने देने में ही महानता है - हारा आदमी जीत जाता है । रामचन्द्र जी ने भरत को गुलाम बना लिया । सारी ज़िन्दगी वे रामचन्द्र जी के गुलाम रहे ।यह है भगवान का स्वाभाव जो कि हमारे लिए प्रेरणा लेने एवं देने लायक है ।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book - भगवान राम के चरित्र प्रेरणा स्रोत्र )
७२. विचारों के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति होती है । विचार आदमी को गिरा सकतें है और विचार ही आदमी को उठा सकतें है । आदमी कुछ नहीं हैं

जो व्यक्ति हमारे विचारों को पढ़ेगा उसके घर मैं स्वर्ग बना रहेगा । मेरे विचारों को घर घर पहुँचाना ही मेरी सच्ची सेवा है ।

विचारों का बना हुआ है । विचारों से आदमी देवता ऋषि महात्मा ही नहीं परमात्मा बन जाता है, और विचारों से ही आदमी डाकू लूटेरा बन जाता है ।
छोटी छोटी बातों को लोग इतना बड़ा कर देतें है की वह समस्या हो जाती है । विचारों की सफाई के लिए ही हमने सारा साहित्य लिखा है। जो भी साहित्य हमने लिखा है , इससे प्रत्येक व्यक्ति की समस्याओं का हल हो सकता है ।

अगर समस्याओं का हल करना है तो हमारे विचारों से समस्याओं का हल होग। चाहे आज कर लो , चाहे सौ वर्ष के बाद । गायत्री माने ऊँचें विचार , यज्ञ माने परोपकार । जब तक व्यक्ति निकृष्ट विचार वाला और स्वार्थी रहेगा तब तक समस्याओं का हल हो ही नहीं सकता ।
शंकराचार्य अगर अपनी माँ का कहना मानते तो एक पंडित या प्रतिष्टित कथा वाचक ही बनकर रह जाते, वे शंकराचार्य नहीं बन सकते थे । उनके विचारों ने उन्हे शंकराचार्य ही नहीं बल्कि शिव का अवतार बना दिया ।
विवेकानंद नौकरी करते तो वे केवल बडे बाबु बन सकते थे , वे धर्मं गुरु नहीं बन सकते थे , जिन्होने भारतीय संस्कृति का प्रचार विदेशों में जाकर किया ।
गुरु नानकदेव अगर व्यापार करते तो , दो चार दुकानों के मालिक बन सकते थे , सिखों के गुरु नहीं बन सकते थे ।
गाँधी वकालत करते तब दो चार लाख रुपैय्या ही कम सकते थे , परन्तु महात्मा गाँधी नहीं बन सकते थे ।
बेटा विचारों में बड़ी शक्ति है , जो भी मेरे विचारों को पढ़ेगा उसको लाभ अवश्य होगा । जो कोर पूजा पाठ , भोग , फूल, माला, आदि तक ही सिमित रह जाता है , वह हमेशा खाली हाथ ही रहेगा । जो थोडा भी समय मेरे विचारों को फेलाने में लगाएगा उसे मेरा आशीर्वाद अवश्य मिलेगा ।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book: पेज ५५-५६- पूज्य गुरुदेव के कुछ मार्मिक संस्मरण )
७३. अपनी मृत्यु के उपरान्त अपने साथ आप अपने अच्छे बुरे कर्मों की
पूँजी साथ ले जायेंगे , इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते , "याद रखें कुछ नहीं ".

- स्वामी विवेकानन्द
७४. स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर मैं स्वयं से प्रेम कर सकता
हूँ , तो फिर दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृण्डा कैसे कर सकता हूँ।

- स्वामी विवेकानन्द
७५. सभी कमज़ोरी सभी बंधन मात्र एक कल्पना हैं , कमज़ोर न पडें !
मज़बूती के साथ खड़े हो जाओ ! शक्तिशाली बनो ! मैं जानता हूँ सभी धर्म यही हैं। कभी कमज़ोर नहीं पड़ें। आप अपने आप को शक्तिशाली बनाओ। आपके भीतर अनन्त शक्ति है।

- स्वामी विवेकानन्द
७६. जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं ; तब तक मैं उस प्रत्येक
व्यक्ति को ग़ददार मानता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित हुए और अब वह उनकी और ध्यान नहीं देते।

- स्वामी विवेकानन्द
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