Monday, March 30, 2015

Inspirational and Motivational Quotes in Hindi


Dear Readers

Enclosed here is a collection of Inspirational and Motivational Quotes in Hindi.
These Quotes are from India's glorious Enlightened Spiritual Masters : Swami Vivekananda, Ramakrishna Paramhansa, Yug rishi Shriram Sharma Acharya , Maharishi Arvind, Mata Bhagwati Devi Sharma , Guru Nanak ji and similar others.

New Quotes will continuously be added to this collection. So please keep checking  back for the same.

कोट्स हिन्दी (Motivational and Inspirational Quotes in Hindi) :
                 



१.  अच्छे  विचार ही मनुष्य को सफलता और जीवन देते हैं।
                                                       -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



२. किसी का भी अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



३. जूठन छोड़ कर अन्न भगवान का तिरस्कार  ना करें।
                                                        -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



४. अपनी प्रशंसा पर गर्वित होना ही चापलूसी को प्रोत्साहन देना है।                                              -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



५. बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है।                                          -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





५. बाज़ार में वस्तुओं की कीमत दूसरे लोग निर्धारित करते हैं, पर मनुष्य अपना मूल्यांकन स्वयं करता है और वह अपना जितना मूल्यांकन करता है उससे अधिक सफलता उसे कदपित नहीं मिल पाती।                                      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



६. अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कारित एवं चरित्र को परिष्कृत बनाने वाले साधक को गायत्री महाशक्ति मातृवत् संरक्षण प्रदान करती है।                                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


७. ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री आप करने से चित शुद्ध होता है , हृदय में निर्मलता आती है और शरीर निरोग रहता है।
                                                            -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



८. डरना केवल दो से चाहिए, एक ईश्वर के न्याय से और दूसरे पाप अनाचार से।                                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



९. दूसरों की परिस्तिथि में हम अपने को रखें, अपनी परिस्थिति में दूसरों को रखें और फिर विचार करें की इस स्तिथि में क्या सोचना और करना उचित है ?
                                                                            -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



१०. प्रत्येक व्यक्ति जो आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं , उन्हें यह मानकर चलना चाहिए परमात्मा ने उसे मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर भेजते समय उसकी चेतना में समस्त संभावनाओं के बीज डाल दिये हैं।                            -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




११. बुद्धि को निर्मल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने का महामंत्र है - गायत्री मंत्र।                                        -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




१२. अपनी रोटी मिल- बाँटकर खाओ , ताकि तुम्हारे सभी भाई सुखी रह सकें।
                                      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य






१३. आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है , पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाई ही खोजता है।

                                                          -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




१४. व्यभिचार के , चोरी के, अनीति बरतने के , क्रोध एवं प्रतिशोध के, ठगने एवं दंभ , पाखंड बनाने के कुविचार यदि मन में भरे रहें तो मानसिक स्वास्थ्य का नाश ही होने वाला है।                                                                          -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





१५. अपनी गलतियों को ढूँढना , अपनी बुरी आदतों को समझना , अपनी आन्तरिक दुर्बलताओं को अनुभव करना और उन्हें सुधारने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहना यही जीवन संग्राम है।                                                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





१६. अपनी छोटी  - मोटी भूलों के बारे में हम यही आशा करते हैं कि लोग
उन पर बहुत ध्यान न देंगे , 'क्षमा  करो और भूल जाओ ' की नीति अपनावे तो फिर हमे भी उतनी ही उदारता मन में क्यों नहीं रखनी चाहिये।                         -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




१७. गायत्री को इष्ट मानने का अर्थ है - सत्प्रवृति की सर्वोत्कृष्टता पर आस्था।                 -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




२०. सच्चा ज्ञान वह है , जो हमारे गुण , कर्म , स्वभाव की त्रुटियाँ सुझाने , अच्छाईयाँ बढ़ाने एवं आत्म - निर्माण की  प्रेरणा प्रस्तुत करता है।                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





२१. बाहरी शत्रु उतनी हानि नहीं कर सकते , जितनी अंतः शत्रु करते हैं।                                         -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





२२. आत्मिक समाधान के लिए कुछ क्षड़ ही पर्याप्त होते हैं।
                                                       -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





२३. जल्दी सोना , जल्दी उठना शरीर और मन की स्वस्थता को बढ़ाता है।                                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




२४. तृष्णा नष्ट होने के साथ ही विपत्तियाँ भी नष्ट होती हैं।
                                                        -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



२५. आत्मा की आवाज़ को जो सुनता है। श्रेय मार्ग पर सदा ही चलता।                                             -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




२६. आलस्य से बढ़कर अधिक घातक और अधिक समीपवर्ती शत्रु दूसरा नहीं।                                 -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





२७. आत्मज्ञान के बिना अभाव दूर नहीं हो सकते , आत्मज्ञानी को कोई अभाव नहीं होते।                 -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





२८. शील दरिद्रता का , दान दुर्गति का , बुद्धि अज्ञान का और भक्ति भय का नाश करती है।            -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

 

२९. धर्म से आध्यात्मिक जीवन विकसित होता है और जीवन में समृद्धि का उदय होता है।                 -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३०. प्रत्येक कार्य को प्रभु पूजा के तुल्य माने।
                                                      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३१. मानवता की सेवा से बढ़कर और कोई काम बड़ा नहीं हो सकता।                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




३२. मित्र वह है जो मित्र की भलाई करे।
                                                         -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




३३. मनुष्य परिस्तिथयों का दास नहीं , वह उनका निर्माता , नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३४. पुण्यों में सबसे बड़ा पुण्य परोपकार है।
                                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३५. प्रसन्नता ही श्रेष्ठ मानसिक आहार है।
                                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३६. यदि व्यकतित्व में शालीनता का समावेश न आया तो फिर पढ़ने में समय नष्ट करने से क्या लाभ
                                                                          -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३७. जो व्यक्ति अपने जीवन को शुभ कर्मा द्वारा सार्थक नहीं बनाता , उसका जनम लेना व्यर्थ है।      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




३८. उन विचारों को त्याग दो जो आत्मा को नष्ट कर दें।
                                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





३९. विनम्र रहिये , क्योंकि आप इस महान संसार की वस्तुतः एक बहुत छोटी इकाई हैं।                      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य






४०. भुजाएं साक्षात् हनुमान हैं और मस्तिष्क गणेश , इनके निरन्तर साथ रहते हुए किसी को दरिद्र रहने की आवश्यकता नहीं।                                                 -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य






४१. मैले करने कपड़े को साफ़ करने के लिए जो उपयोगिता साबुन की है वाही मन पर चढ़े हुए मैल को शुद्ध करने के लिए स्वाध्याय की है।                                  -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





४२. भगवान एक है , लेकिन उसके कई रूप हैं , वो सभी का निर्माणकर्ता है और वो खुद मनुष्य का रूप लेता है।
                                                                 - गुरु नानक देव





४३. जिस प्रकार हम आत्मा का सम्मान करते हैं , ईश्वर का सम्मान करते हैं , दूसरों का सम्मान करना चाहते हैं , उसी प्रकार हमे अपने साधनों उपकरणों और वस्तुओं का भी आदर करना चाहिए।                                                     -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





४४.  जो भी धर्म हो , जो भी मत हो , सभी उसी एक ईश्वर को पुकार रहे हैं।
इसलिए किसी धर्म अथवा मत के प्रति अश्रद्धा या घृणा नहीं करनी चाहिए।                                     -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





४५. कुमार्ग से कमाया गया हुआ धन कुछ देर के लिए प्रसन्नता दे  सकता है पर अन्त में वह रुलाता हुआ ही विदा होता है।  बिना परिश्रम किये मुफ्त में मिला हुआ धन भी बुराइयों को ही जन्म देता है।                                -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




४६. कुविचारों और दुर्भावनाओं के समाधान के लिए स्वाध्याय , सत्संग , मनन और चिन्तन यह चार ही उपाय हैं।
                                                         -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




४७. मृत्युपर्यन्त काम करो , मैं तुम्हारे साथ हूँ, और जब मैं नहीं रहूँगा , मेरी आत्मा तुम्हारे साथ काम करेगी।
                                                            -स्वामी विवेकानन्द जी



४८. अपना धर्म , अपनी संस्कृति अथवा अपनी सभ्यता छोड़कर दूसरों की नक़ल करने से कल्याण की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं।                             -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





४९. सबसे बड़ा दीन  दुर्बल वह है , जिसका अपने ऊपर नियन्त्रण नहीं।                                   -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





५०. तन की सुंदरता से मन की सुंदरता अधिक महत्व रखती है।                                                         -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




५१. ईश्वरीय नियम उस बुद्धिमान माली की तरह है जो बेकार घास -कूड़े को उखाड़ कर फेंक देता है और योग्य पौधों को भरपूर साज संभाल कर उन्हें उन्नत बनता है।

जिसके खेत मैं बेकार खर-पतवार उग पड़े, उसमें अन्न की फसल मारी जायेगी।ऐसे किसान की कौन प्रशंसा करेगा जो अपने खेत की दुर्दशा करता है।
निश्चय ही ईश्वरीय नियम बेकार पदार्थों की गन्दगी हटाते रहतें हैं,ताकि सृष्टि का सौंदर्य नष्ट ना हो।
                                 (अखंड ज्योति -मार्च १९४३ ,पेज -६८ )-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
                                                       


५२. संकट या तो मनुष्य को तोड़ देते हैं या उसे चट्टान जैसा मज़बूत बना देते हैं।                              -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




५३. राग और द्वेष , स्वार्थ और संगर्ष के जन्मदाता है।
                                                    -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य





                 ५४. अगले दिनों संसार में एक भी व्यक्ति अमीर न रह 

सकेगा। पैसा बँट जायेगा , पूँजी पर समाज का नियंत्रण होगा और हम सभी केवल निर्वाह मात्र के अर्थ साधन उपलब्ध कर सकेंगे।                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




५५. पात्रता विकास के बिना न संसार में कोई रिश्ता है और न इसके बिना अध्यात्म क्षेत्र में कोई रास्ता है।
                                                      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



५६. जीवन एक पाठशाला है , जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं।                   -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



५७. जीवन में सफलता पाने के लिए आत्मा विश्वास उतना ही ज़रूरी है ,
जितना जीने के लिए भोजन। कोई भी सफलता बिना आत्मा विश्वास के मिलना असंभव है।
                                                              -माता भगवती देवी शर्मा



५८.  अव्यवस्तिथ मस्तिष्क वाला कोई भी व्यक्ति संसार में सफल नहीं हो सकता।                       -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



५९. मानव के कार्य ही उसके विचारों की सर्व श्रेष्ठ व्याख्या है।
                                                      -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य



६०. लोभी मनुष्य की कामना कभी पूर्ण नहीं होती।
                                                         -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




६१. लक्ष्य के अनुरूप भाव उदय होता है तथा उसी स्तर का प्रभाव क्रिया में पैदा होता है।                 -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




६२. जब हम ऐसा सोचते हैं की अपने स्वार्थ की पूर्ती में कोई आंच न आने दी जाय और दूसरों से अनुचित लाभ उठा लें , तो वैसी ही आकांक्षा दूसरे भी हम से क्यों न करेंगे।
                                                                          -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य


६३. परिस्थितियों का रोना  रोयें :लंबी-चौड़ी योजनाएँ बनाने की अपेक्षा अपने पास मौजूद साधनों को लेकर ही छोटे-मोटे कार्यों में जुट जाया जाए तो भी प्रगति का सशक्त आधार बन सकता है ।
परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी – साधनों का बाहुल्य होगा, तब व्यवसाय आरंभ करेंगे, यह सोचते रहने की तुलना में अपने अल्प साधनों को लेकर काम में जुट जाना कहीं अधिक श्रेयस्कर है ।
काम छोटा हो अथवा बड़ा उसमें सफलता के कारण, साधन नहीं, अथक पुरुषार्थ, लगन एवं प्रामाणिकता बनते हैं । देखा जाए तो विश्व के सभी मूर्धन्य संपन्न सामान्य स्थिति से उठकर असामान्य तक पहुँचे । साधन एवं परिस्थितियाँ तो प्रतिकूल ही थीं, पर अपनी श्रमनिष्ठा एवं मनोयोग के सहारे सफलता के शिखर पर जा चढ़े ।
वे यदि परिस्थितियों का रोना रोते रहते तो अन्य व्यक्तियों के समान ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते और संपन्न बनने की कल्पना में मन बहलाते रहते ।"     - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ,  (Book: बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृ. १३)




६४. यह दुर्भाग्य ही है की आज धन को सर्वप्रथम स्थान और सम्मान मिल गया !
इसका दुष्परिणाम यह हुआ की व्यक्ति अधिकाधिक धन सँग्रह करके बडे से बड़ा सम्मानीय बनना चाहता है , जबकि धन का उपयोग बिना उसे रोके निरंतर सत्यप्रयोजनो में प्रयुक्त करते रहना ही हो सकता है !
गड्ढे में जमा किया पानी तथा पेट में रुक हुआ अन सड़ जाता है , और अपने संग्रह्कर्ता को उन्मादी बनाते है और अनेक विकार पैदा करता है !तिजोरी में बंद नोट अपने संग्रहकर्ता को उन्मादी बनाते है और और सारे समाज में बदबू भरी महामारी फैलाते है !
इसलिए धन उपार्जन की प्रशंसा के साथ साथ यह तथ्य भी जुड़ा हुआ है की महत्वपूर्ण अवश्यताक्ताओं की पूर्ती के लिए उसे तत्काल प्रयुक्त करते रहा जाये !                              -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य( Vangmaya Nos 66)


६७. संसार में कांटे बहुत हैं ! उन सबको हटा देना बहुत कठिन हैं ! यह सरल हैं की अपने पैरों में जूते पहने और बिना कांटे कंकडों से कष्ट पाये निश्चिनतिता पूर्वक विचरण करे !

सारी दुनिया को अपनी इच्छा अनुकूल चलाने वाला नहीं बनाया जा सकता , पर अपना सोचने का ढंग ऊँचा उठाकर लोगों से बिना टकराये सरलता पूर्वक अपने को बचाकर रखा जा सकता हैं और बिना टकराए वक्त गुज़र सकता हैं !

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य  (Bookयुवा पीढ़ी को उज्जवल भविष्य का मार्गदर्शन " /Yuva Pidhi Ko Ujjwal Bhavishya ka Margdarshan)



६८. हमें यह जानना चाहिए की इश्वर किसी के भाग में कुछ और किसी के
भाग्य में कुछ लिख कर पक्षपात नहीं करता और ना ही भविष्य को पहले से तैयार करके किसी को कर्म की स्वतंत्रता में बाधा डालता हैन.
हर आदमी अपने इछानुसार कर्म करने में पूर्ण स्वतंत्र है ! कर्मो के अनुसार ही हम सब फल पाते हैं ! इसलिए भाग के ऊपर अवलंबित ना रहकर मनुष्य को कर्म करना चाहियें !
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book : " युवा पीढ़ी को उज्जवल भविष्य का मार्गदर्शन " (Yuva Pidhi Ko Ujjwal Bhavishya ka Margdarshan)



६९. बुद्धि की देवी गायत्री के प्रत्येक उपासक के लिए स्वाध्याय भी उतना ही आवश्यक धर्मं कृत्य है , जितना की जप , ध्यान , पाठ आदि. ।

बिना स्वाध्याय के , बिना ज्ञान की उपासना के बुद्धि पवित्र नहीं हो सकती , मानसिक मलिनता दूर नहीं हो सकती, और बिना इस सफाई के बिना माता का सच्चा प्रकाश कोई उपासक अपने अन्तः करण में अनुभव नहीं कर सकता ।

जिसे स्वाध्याय से प्रेम नहीं हैं उसे गायत्री उपासना से प्रेम है यह माना नहीं जा सकता ।
बुद्धि की देवी गायत्री का सच्चा भोजन स्वधयाय ही है । ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं । इसलिए गायत्री उपासना के साथ ज्ञान की उपासना भी अविछिन्न रूप से जुडी हुई हैं ।
                                                                           -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य




७०. आधे अधूरे मन से कभी काम नहीं करना चाहिए । शारीर और मन की जब शक्ति जुड़ जाती है , तब आदमी बडे से बडे कार्य भी आसानी से कर
सकता है । जितने भी महापुरुष हुए है , उन्होने मन लगाकर कार्य किया है , तभी सफलता मिली है । जो भी काम आपको सौपा गया है , उसे मन लगाकर करो ।
              -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ( Book-पेज १०८ - पूज्य गुरुदेव के कुछ मार्मिक संस्मरण )



७१. बच्चे संस्कारी कैसे बने :
आप पहले अपने परिवार में इस तरह का त्यागमय वातावरण बनाइये

जैसे कि दशरथ के यहाँ था , और जैसा कि राम सीता , लक्ष्मण -उर्मिला आदि का त्यागमय जीवन था । वैसा वातावरण आपके घर परिवार का होगा तभी यह हो सकता है ।

उर्मिला का त्याग सीता जी से भी ज़यादा है । जिस घर में ऐसा वातावरण होगा वहाँ  संस्कारवान बच्चे पैदा होंगे ।

एक बार -रामचंद्र जी और भरत जी गेंद खेल रहे थे । भारत जी खेलने में कमज़ोर थे , परन्तु रामचंद्र जी उन्हे बार बार जिता देते थे । अपने से छोटों कि हिम्मत औए इज़ज़त बढ़ाने देने में ही महानता है - हारा आदमी जीत जाता है । रामचन्द्र जी ने भरत को गुलाम बना लिया । सारी ज़िन्दगी वे रामचन्द्र जी के गुलाम रहे ।यह है भगवान का स्वाभाव जो कि हमारे लिए प्रेरणा लेने एवं देने लायक है ।
                                    -पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book - भगवान राम के चरित्र प्रेरणा स्रोत्र )


७२. विचारों के अन्दर बहुत बड़ी शक्ति होती है । विचार आदमी को गिरा सकतें है और विचार ही आदमी को उठा सकतें है । आदमी कुछ नहीं हैं


विचारों का बना हुआ है । विचारों से आदमी देवता ऋषि महात्मा ही नहीं परमात्मा बन जाता है, और विचारों से ही आदमी डाकू लूटेरा बन जाता है ।

छोटी छोटी बातों को लोग इतना बड़ा कर देतें है की वह समस्या हो जाती है । विचारों की सफाई के लिए ही हमने सारा साहित्य लिखा है। जो भी साहित्य हमने लिखा है , इससे प्रत्येक व्यक्ति की समस्याओं का हल हो सकता है ।
जो व्यक्ति हमारे विचारों को पढ़ेगा उसके घर मैं स्वर्ग बना रहेगा । मेरे विचारों को घर घर पहुँचाना ही मेरी सच्ची सेवा है ।

अगर समस्याओं का हल करना है तो हमारे विचारों से समस्याओं का हल होग। चाहे आज कर लो , चाहे सौ वर्ष के बाद । गायत्री माने ऊँचें विचार , यज्ञ माने परोपकार । जब तक व्यक्ति निकृष्ट विचार वाला और स्वार्थी रहेगा तब तक समस्याओं का हल हो ही नहीं सकता ।

शंकराचार्य अगर अपनी माँ का कहना मानते तो एक पंडित या प्रतिष्टित कथा वाचक ही बनकर रह जाते, वे शंकराचार्य नहीं बन सकते थे । उनके विचारों ने उन्हे शंकराचार्य ही नहीं बल्कि शिव का अवतार बना दिया ।

विवेकानंद नौकरी करते तो वे केवल बडे बाबु बन सकते थे , वे धर्मं गुरु नहीं बन सकते थे , जिन्होने भारतीय संस्कृति का प्रचार विदेशों में जाकर किया ।

गुरु नानकदेव अगर व्यापार करते तो , दो चार दुकानों के मालिक बन सकते थे , सिखों के गुरु नहीं बन सकते थे ।

गाँधी वकालत करते तब दो चार लाख रुपैय्या ही कम सकते थे , परन्तु महात्मा गाँधी नहीं बन सकते थे ।

बेटा विचारों में बड़ी शक्ति है , जो भी मेरे विचारों को पढ़ेगा उसको लाभ अवश्य होगा । जो कोर पूजा पाठ , भोग , फूल, माला, आदि तक ही सिमित रह जाता है , वह हमेशा खाली हाथ ही रहेगा । जो थोडा भी समय मेरे विचारों को फेलाने में लगाएगा उसे मेरा आशीर्वाद अवश्य मिलेगा ।

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य (Book: पेज ५५-५६- पूज्य गुरुदेव के कुछ मार्मिक संस्मरण )


७३. अपनी मृत्यु के उपरान्त अपने साथ आप अपने अच्छे बुरे कर्मों की
पूँजी साथ ले जायेंगे , इसके अलावा आप कुछ साथ नहीं ले जा सकते , "याद रखें कुछ नहीं ". 
                                                            -   स्वामी विवेकानन्द 



७४. स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर मैं स्वयं से प्रेम कर सकता
हूँ , तो फिर दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृण्डा कैसे कर सकता हूँ। 
                                                             स्वामी विवेकानन्द

७५. सभी कमज़ोरी सभी बंधन मात्र एक कल्पना हैं , कमज़ोर न पडें !
मज़बूती के साथ खड़े हो जाओ ! शक्तिशाली बनो ! मैं जानता हूँ सभी धर्म यही हैं। कभी कमज़ोर नहीं पड़ें। आप अपने आप को शक्तिशाली बनाओ। आपके भीतर अनन्त शक्ति है। 
                                                                               स्वामी विवेकानन्द

७६. जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं ; तब तक मैं उस प्रत्येक
 व्यक्ति को ग़ददार मानता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित हुए और अब वह उनकी और ध्यान नहीं देते। 
                                                               स्वामी विवेकानन्द