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1. “परिस्थितियों का रोना न रोयें "
English Translation:
1. “परिस्थितियों का रोना न रोयें "
लंबी-चौड़ी योजनाएँ बनाने की अपेक्षा अपने पास मौजूद साधनों को लेकर ही छोटे-मोटे कार्यों में जुट जाया जाए तो भी प्रगति का सशक्त आधार बन सकता है ।
परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी –
साधनों का बाहुल्य होगा, तब व्यवसाय आरंभ करेंगे, यह सोचते रहने की तुलना में अपने अल्प साधनों को लेकर काम में जुट जाना कहीं अधिक श्रेयस्कर है ।
काम छोटा हो अथवा बड़ा उसमें सफलता के कारण, साधन नहीं, अथक पुरुषार्थ, लगन एवं प्रामाणिकता बनते हैं । देखा जाए तो विश्व के सभी मूर्धन्य संपन्न सामान्य स्थिति से उठकर असामान्य तक पहुँचे । साधन एवं परिस्थितियाँ तो प्रतिकूल ही थीं, पर अपनी श्रमनिष्ठा एवं मनोयोग के सहारे सफलता के शिखर पर जा चढ़े ।
वे यदि परिस्थितियों का रोना रोते रहते तो अन्य व्यक्तियों के समान ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते और संपन्न बनने की कल्पना में मन बहलाते रहते ।"
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (Book: बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृ. १३)
English translation and abbreviation of the above Quote :
"Don't wait for perfect situations and circumstances to occur.
Many a times we make large plans and wait for the perfect circumstances to come along to execute them. We await a perfect time and look for abundant resources to enable our success.
Substantial progress and achievements in life can be made by executing on small plans that require limited resources. Success in big and small tasks is dependent not on the availability of resources but is achieved through untiring perseverance, hard work, and dedication towards the task.
If we look at examples of successful men , we will find that most of them had backgrounds where there was a resource crunch or they were men of limited means .They all started as common men and yet achieved extraordinary success, greatness and riches in their lifetime. When resources and favorable circumstances were not available , success was achieved through mental strength, focused effort , thinking and dedication towards the work at hand.
If the successful men of the world had waited for the right circumstances or adequate resources to come along , then they would have perhaps wasted an entire lifetime just dreaming of success!"
Yug Rishi Acharya Shriram Sharma
2.प्रार्थना कब सफल होगी ?
प्रार्थना कब सफल होगी ? |
"ईश्वर से की गयी प्रार्थना का तभी उत्तर मिलता है, जब हम अपनी शक्तियों को काम में लायें |
आलस्य , प्रमाद, आकर्णमयता और अज्ञान यह सब अवगुड यदि मिल जाएँ तोह मनुष्य कि दशा वह हो जाती है जैसे किसी कागज़ के थैले के अंदर तेज़ाब भर दिया जाये |
ऐसा थैला अधिक समय तक न ठैर सकेगा और बहुत जल्द गल कर नष्ट हो जायेगा ।
ईश्वरीय नियम बुद्धिमान माली के समान हैँ , जो कूड़े घास को निकाल फेंकता है और योग्य पौधों कि भरपूर साज़ संभल रखकर उन्हें उन्नत बनाता है |
जिसके खेत में बेकार खर-पतवार
उगे पड़े होंगे ,
उस खेत की फसल मारी जायेगी । ऐसे किसान कि कौन प्रशंसा करेगा ,
जो अपने खेत कि दुर्दशा करता हैं । निस्चय ही ईश्वरीय नियम निकम्मे पदार्थों कि गन्दगी हटाते रहतें हैं ,
ताकि सृष्टि का सौंदर्य नष्ट ना हो पाये । "
"पेज ६५ , बुक : "ऋषि चिंतन के सान्निध्य में "
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
English Translation and abbreviation:
3. ज्ञान का संचय |
" विद्वान पुरुष सुगन्धित पुष्पों के सामान हैं । वे जहां जाते हैं वहाँ आनन्द साथ ले जाते हैं । उनका सभी जगह घर है और सभी जगह स्वदेश है । विद्या धन है । अन्य वस्तुएँ तो उसकी समता में बहुत तुच्छ हैं । यह धन ऐसा है जो अगले जनमो में भी साथ रहता हैं । विद्या द्वारा संचारित कि हुई बुद्धि आगामी जन्मों में क्रमशः उन्नति ही करती जाती हैँ और उससे जीवन उचतम बनते हुए पूर्णता तक पहुँच जाता है ।
कुए को जितना गहरा खोदा जाए, उसमें से उतना ही अधिक जल प्राप्त होता जाता है । जितना अधिक अध्ययन किया जाये उतना ही ज्ञानवान बना जा सकता है । विश्व क्या है और इसमें कितनी आनंदमयी शक्ति भरी हुई है , इसे वही जान सकता है , जिसने विद्या पढ़ी है । ऐसी अनुपम सम्पति का उपार्जन करने में ना जाने क्यों लोग आलस्य करते है ?
आयु का कोई प्रशन नहीं है,चाहे मनुष्य वृद्ध हो जाए या मरने के लिए चारपाई पर पड़ा हो तो भी विद्या प्राप्त करने में उत्साहित होना चाहिए क्योंकि ज्ञान तो जन्म -जन्मांतरों तक साथ जाने वाली वस्तु है।
वे मनुष्य बड़े अभागे है जो विद्या पढ़ने में जी चुराते हैं । भिखारी को दाता के सामने जैसे तुच्छ बनना पड़ता है , ऐसे ही यदि तुम्हे शिक्षकों के सामने तुच्छ बनना पड़े तोह भी शिक्षा प्राप्त करना ही कर्तव्य है।
"पेज ६२ , बुक : "ऋषि चिंतन के सान्निध्य में "
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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